


भारतीय दर्शन का मूल भाव केवल बाहरी पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा के मिलन की यात्रा है। इसी यात्रा में दुर्गा तत्व एक केंद्रीय स्थान रखता है। दुर्गा केवल देवी का नाम नहीं, बल्कि शक्ति, साहस और आत्मविश्वास की वह ऊर्जा है जो प्रत्येक जीव में अंतर्निहित है। नवरात्रि के नौ दिन इसी शक्ति को जगाने और आत्म-शुद्धि के माध्यम माने गए हैं।
भारतीय अध्यात्म में दुर्गा उस ऊर्जा का प्रतीक हैं जो अज्ञान, भय और नकारात्मकता से रक्षा करती है। "दुर्ग" का अर्थ है कठिनाई, और "दुर्गा" वह शक्ति जो कठिनाइयों को पार करने का सामर्थ्य देती है। उपनिषदों और पुराणों में यह शक्ति माया नहीं, बल्कि मूल चेतना कही गई है—वह चेतना जिसके बिना न तो सृष्टि की उत्पत्ति संभव है और न ही उसका पोषण।
नवरात्रि के संदर्भ में दुर्गा तत्व आत्म-युद्ध की ओर संकेत करता है। राक्षस महिषासुर कोई बाहरी शक्ति मात्र नहीं, बल्कि हमारे भीतर की काम, क्रोध, लोभ और अहंकार की प्रवृत्तियाँ हैं। जब साधक जप, ध्यान और साधना करता है, तो वह इन नकारात्मक प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करता है। यही विजय महिषासुर मर्दिनी की कथा के रूप में भारतीय समाज को सिखाई जाती है।
आम जीवन में भी दुर्गा तत्व का महत्व उतना ही गहरा है। हर व्यक्ति अपने जीवन में चुनौतियों का सामना करता है—कभी पारिवारिक, कभी सामाजिक, कभी आंतरिक। ऐसे समय में दुर्गा तत्व की उपासना मनोबल देती है, दिशा देती है और यह स्मरण कराती है कि शक्ति बाहर नहीं, भीतर ही स्थित है। नवरात्रि का व्रत, उपवास और साधना इसी आंतरिक शक्ति को जगाने का साधन हैं।
इस प्रकार, दुर्गा तत्व केवल एक धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन का जीवंत संदेश है। यह हमें सिखाता है कि जब मनुष्य अपने भीतर की शक्ति को पहचानता है, तो वह हर कठिनाई पर विजय पा सकता है। नवरात्रि इसी दिव्य आत्म-यात्रा का पर्व है—जहाँ साधारण मानव भी असाधारण बन सकता है।